Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 4
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
४१७
नागपुरक लेख २०५ समत १८८७ का ज्येष्ठ सुदी ९ विंशतिनामसवत्सरे श्रीम० स० ___ व. कु. म. पद्मनविटेवात् तत्प? म. देवेंद्रकीर्ति प्रतिष्ठा
करान्वितं । (विवरण क्र. २०) २०६ संवत् १८८८ वैसाख कृष्ण ५ रविवासरे श्रीमूलसघे व० स०
श्रीकु० इन प्रतिमा कारयेत् श्रीसकलपचकमेटिक स्वकर्मक्षयार्थ
प्रतिमा प्रतिष्ठिनिये । (विवरण क्र. ५५) २०७ संमत १८८८ । (विवरण क्र. १०६) २०८ समत १८ वैसाख शुक्ल ११ गुरुवासर मलसघ ब० स०
कुठकुदाचार्यान्वय । (विवरण क्र० ८५) २०६ समत १८८९ वृषभायणे"। (विवरण ऋ० १०३) २१० संमत १८६१ शके १७५६ जयनामसवत्सरे श्रावणमास कृष्ण
पक्षे पराकी मलसंधे स० ब. कारंजानगरे इट पनादेवि श्री
महेवेढकीर्तिस्वामिना प्रतिष्टितम् । (विवरण ऋ० २३७) २११ समत १८९३ वर्षे माघ सुट १० बुधदिनी मुलसध कुदकुदा
चार्याम्नाय व० स० महारकपद्मनदिदेवात् तशिष्य भ० देवेंद्रकीर्तिदेवात् तत् उपदेशात् भार्या हिता पुत्र नेमुराम भ्राता दामजी भार्या लाडव प्रतिष्ठितं प्रणमंति। (विवरण क्र०
१६) २१२ स. १८९३ श्रीम. नागपूर श्रीपाशु प० । (विवरण क्र०
२१३ श्रीमूलसघ सक १७५९ । (विवरण क्र० ४५४,५५८) २१४ श्रीसंवत १८९४ साल आपाढ व॥ श्रीमहावीर स्वामीजीका
मुख । ( विवरण क्र. ४६,५०) २१५ समत १८९७ शके १७६. भगवतिनामसवत्सरे बैसाख सदी
३ बुधवासरे इद श्रीपाश्वनाथस्वामी श्रीमूलसघे सरस्वतोगच्छे बलात्कारगणे कुदबुदाचार्यान्वये भधारक श्रीमद्देवेंद्रकीतिस्वामी

Page Navigation
1 ... 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464