Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 4
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 380
________________ जैनशिलालेख-संग्रह १०४ सके १५९६ फा० शु॥ ३ म० "कीर्ति तत्प? दयाभूषण श्रीमू० स० ब० । (विवरण क्र० २२१) १०५ शके १५९७ मुलसघ बलात्कारगण भ० धर्मभूषण ॐ हरीसाव पुत्र फकीचद प्रणमति । ( विवरण क्र. २२८) १०६ श० १५९७ मू० सेनगणे भ० जि. तजेगामप्रामे गु० गनसेठ मा० सिशवाई पु० कृस्नाजी भा० मेगाई पु० जोगाजी प्रणमति । (विवरण क्र.४५७) १०७ संमत १७३२ वर्षे ज्येष्ठ सुदी २ श्रीमूलसघे महारक श्रीसुरेंद्र कीर्तिस्तदाम्नाये खडेरवालान्वये गृध्रवालगो सा देवसी पुन सगहान प्रतिष्ठा कारिता ।(विवरण क्र० ३७७) १०८ शाके १५९७ मू॥ व ॥ म. श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् ऊजानीपल्ली वालज्ञातीय माणिकसा तत्पुत्र नारसा सुत शतसा प्रणमति । (विवरण क्र. १५९) १०९ [२०] १५६७ मु० जीनसेन उ० लखसेट माहोरकर प्रण मंति। (विवरण क्र. ११२) ११. शके १५९१पिंग्लू श्रीमू०। (विवरण क्र. ४९०) १११ सक १६०१ समत १७३६ ।(विवरण क्र. ३५९) ११२ सक १६०. गगशिर्ष ।(विवरण ० २२०) ११३ १६०. . . मू०। (विवरण ऋ० ४९१) ११४ सके १६.१ फालगुण सुदि ११ श्रीमलसंघे बलात्कारगणे भट्टारकीपनकीीतलदुपदेशात्श्रीपद्मावतीपल्लीवालज्ञाती भडनाव कुस्तानी पानसी भार्या मगनाई तयोपुत्र वाघुजी प्रणमति । (विवरण क्र. २७२) ११५ सातिनाथ सके १६०४ श्री ।(विवरण क्र० ३७५) ११६ रा० अरशुनसा सके १६०७ क्रोधनामसवत्सरे मार्गशिर्ष सुदी ५ श्रीमूलसधे खढारियागोने स. पी०। (विवरण क्र. १२९)

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