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जैनशिलालेस-संग्रह
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४० बोम्म नातिवेय सा सेनबोव सामन्त ४१ पूर्वक माडि बिट्ट दति यिधर्मव प्रतिपालिसिद्गगे
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[ यह लेख होयसल राजा वीरवल्लालदेवके राज्यकालमें वैशाख, श्रीमुखसवत्सरमे लिखा गया था। बाहुबलिसेट्टि तथा पारिससेट्टि-द्वारा निर्मित एक्कोटि जिनालयके पद्मप्रभदेवकी पूजाके लिए अरेय मारेयनायकद्वारा एक तालाव तथा अन्य कई नायको, गोडो तथा सेट्टियो द्वारा जमीन दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। इनमे नयकीतिसिद्धान्तदेवके शिष्य नेमिचन्द्र तथा बालचन्द्र पण्डित भी सम्मिलित थे।]
[एरि० मै० १९२७ पृ० ४५ ]
२८७ वेरावल ( सौराष्ट्र, गुजरात)
१२वीं सदी, अन्तिम चरण सस्कृत-नागरी , नवम्प्रति नित्यमद्यापि वारिधौ ॥ १ भूयादमीष्टससिद्ध्यै मु. २ पाटकाख्यंपत्तन तविराजते॥ ३ मन्य वेधा विवायैतद्विधिस्सु
पुनरीदृश३ नियमन यंत्र लक्ष्मी स्थिरीकृता ॥५ तनिशेषमहीपाल
मौलिपृष्टाहि ४ मौ नृपः । तेनात्खातासहन्मूलो मूलराज स उच्यते ।।७
पुकैकाविभूपाला सम -- ५ जिवजखुराहत। अतुच्छमुच्छलत्सूर्यपर्वभ्रममजीजनत् ॥६ पोरुपेण प्रतापेन पुण्येन--