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-३७१] रत्नापुरि आदिके लेख
३ लिय श्रीश्रुतकीर्तिदेवर गुड्डुगलु ५ कोग नाड श्रीकरणट कावण्णगल मक्क५ लु नाकण्ण होनण्णगलु माडिसिद श्री६ नेमिनाथस्वामिगल प्रतिमे मग७ ल महा श्री श्री श्री
[ इस लेखमें श्रीकरणद कावण्णके पुत्र नाकण्ण तथा होनण्ण-द्वारा, जो कोगु प्रदेशके निवासी थे, नेमिनाथकी इस मूतिके स्थापित किये जानेका उल्लेख है। ये दोनो मूलसष-देसियगण-पुस्तकगच्छकी इगलेश्वरबलिके आचार्य श्रुतकीतिके शिष्य थे। लेखकी लिपि १२वी या १३वी सदीकी प्रतीत होती है।
(ए. रि० म० १९४४ पृ० ४२)
३७० रत्नापुरि (मैसूर)
१२वीं-१३वीं सदी, कन्नड [यह दो पंक्तियोका लेख एक भूतिके पाद-पौठपर है जिसमे किसीभट्टारकदेव-द्वारा इस मूर्तिको स्थापनाका निर्देश है। लिपि १२वी या १३वी सदीकी प्रतीत होती है।] [ मूल कन्नड लिपिम मुद्रित ] [ए. रि० मे० १९४४ पृ०७०]
३७१ वेलगोल ( माड्या, मैसूर)
पश्चा-१३वीं सदी, कन्नड [ इस छोटे-से मूर्ति-लेखमें द्रविल सघ-नन्दिसघ-अरुगल अन्वयके कुछ व्यक्तियो-द्वारा इस पार्श्वनाथ मूर्तिकी स्थापनाका निर्देश है। लिपि १२वी या १३वी सदीको प्रतीत होती है । ] [ मूल कन्नड लिपिमें मुद्रित] [ए. रि० मै० १९४४ पृ० ५७]