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१५२ जनशिलालेस-पग्रह
[२०७२१ ॥(१६) दुबलताबनयेंदु बिजलनृपं चटगोमतीवरकलं
मुढि माडिसि कल्वेमं ममंसि २२ दि बिह-घेलवलदोलिनोप्पिप्प पेगुम्मिय (१७) हरलार
बाडकसि २३ चालुक्यचक्रवति पर्माडिरायन कय्योल • २४ माडिसिट माणिक्यतीर्थ
[यह लेख चालुक्यसम्राट विक्रमादित्य (पष्ठ) के राज्यकालका है। इममे प्रथम सुधर्म गणधरकी परपरामे यापनीय सघ-कण्दूर गणके बाहुवली, शुभचद्र, मोनिदेव तथा माधनदि इन आचार्योंका उरलेख है। इनका परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है। अनन्तर एक पूलि नगरके पिट्ट नृपका उल्लेख है जो गगवशमें उत्पन्न हुआ था। इसके चार पुत्र थे-पेम, विज्जल, कीति, गोर्म - तया एक कन्या थी- मललदेवी। विज्जलके सम्बन्ध में गूर्जराष्ट्रके जयसिंहका उल्लेख किया है किन्तु इमका ठीक अर्थ स्पष्ट नही क्योंकि यहाँके कई अक्षर घिस गये है। इसी तरह कृष्णराजकी बहिन रेवकनिमडिकी एक श्लोकमें सिरियादेवीसे तुलना की है उसका पूर्वापर मम्बन्ध भी स्पष्ट नहीं है। अनन्तर कहा है कि विज्जलने एक जैन मन्दिर बनवाया तथा उसे पेर्गुमि ग्राम दान दिया। लेखके अन्तिम भागमें माणिक्यतीर्यका उल्लेख है । इमका सम्बन्ध भी स्पष्ट नहीं है।]
[ए० इ० १८ पृ० २०१] २०८ वेलवत्ति (धारवाड, मैसूर)
१२वीं सदी - पूर्वाय, कन्नड [इस लेखमे सवणूरके वम्मिसेट्टिद्वारा एक ब्रह्मजिनालयके निर्माणका उल्लेख है । इस जिनालयके लिए वम्मिसेटिने वेलवत्तिके ३०० महाजनो