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जैनशिलालेख-सग्रह
[५५५२ र्याणि तृणामलग्नचचलविन्दुचचल च जीवितमाकलय्य स्वदाय
निर्विशेषोयमनुमन्तव्यः परिपालयितव्यश्च । यश्चाज्ञानतिमिर
पटलावृत५३ मविराच्छिन्द्यादाच्छिधमानक वानुमोदेत स प(च)मिमहापात
कैरुपपातकैच सयुक्तस्स्यादित्युक्त च भग(व)ता वेदव्यासेन
न्यासेन ॥ ५४-५८ [ निस्यके शापात्मक श्लोक - षष्टिं वर्षसहस्राणि आदि ] ५९ यथा चैतठेव तथा शासनदाता लिपिज्ञस्स्वहस्तेन स्वमतमारोप
यति ।। स्वहस्तोय मम श्रीकर्कराजस्य श्रीमढि - ६० न्द्रराजसुतस्य ॥ लिखित चैतन्मया महासन्धिविग्रहाधिपतिना
नारायणेन कुलपुत्रकश्रीदुर्गमसुनुना ॥ जीयादुरितविद्वेषि
शासन जि६१ नशासन । यदन्यमतशैलानां भेदने कुलिशायते ॥ (४९)
जयति निनोको धर्मप्पडजीवनिकायबसलो नित्य । चूडामणि
रिव लो(क) ६२ विमाति यत्सर्वधर्माणाम् ।। (५०)
[ यह ताम्रपत्र शक ७४३ मे वैशाख पूर्णिमाको दिया गया था। इममें पहले राष्ट्रकूट सम्राटोकी वशावली अमोघवर्ष (प्रथम) तक दी गयी है । तदनन्तर अमोघवर्पके पितृव्य(चाचा)इन्द्रराजके पुत्र कर्कराज सुवर्णवर्षका उल्लेख है जो गुजरातमे शामन कर रहा था। अमोघवर्षके राज्यारोहणके बाद कई मामन्तोने विद्रोह किया था उनपर विजय प्राप्त करनेमे कर्कराजकी ही मदद उपयोगी सिद्ध हुई थी। कर्कराजने उक्त वर्ष में मूलमघसेनमधके मल्लवादिगुरुके शिष्य सुमतिपूज्यपादके शिष्य अपराजितगुरुको नागसारिकाके जिनमन्दिरके लिए हिरण्ययोगा नामक खेत दान दिया था।]
[ए इ २१ पृ १३३]