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जैनशिलालेख-समह
[८२~ वासुदेवके उपदेशमे विदग्धराजने राजधानी हस्तिकुण्डिकामें ऋपभदेवका मन्दिर बनवाया था। इसने अपनी सुवर्णतुलाका दो तिहाई भाग इम मन्दिरके लिए तथा एकतिहाई भाग गुरुके लिए दान दिया था। विदग्धराजने इमी मन्दिरके लिए हस्तिकुण्डोके व्यापारिपोके कई फरोका उत्पन्न बलभद्र गुरुको दान दिया था। इस दानको तिपि आपाइ, सवत् ९७३ यो। विदग्घराजका पुत्र भमट हुआ। इमने उक्त दानको माघ कृष्ण ११, सवत् ९९६को पुन सम्मति दी। ममटका पुन धवल हुना। इसकी वीरताका विस्तृत वर्णन लेखमें किया है। जब मुजराजने मेदपाटको राजधानी आघाटको नष्ट किया तब वहाँके राजाको धवलने आश्रय दिया था। दुर्लभराजके आक्रमणसे महेन्द्रका रक्षण इसीने किया तथा मूलराजके द्वारा पराजित भरणीवराहको भी आश्रय दिया। वृद्धावस्यामें धवलने अपने पुत्र बाल प्रसादको सिंहामनपर स्थापित किया। इसके ममय सवत् १०५३ में बासुदेवके शिष्य शान्तिभद्रसूरिक उपदेशसे हस्तिकुण्डीको गोठी (व्यापारियोके समूह) ने विदग्धराज-द्वारा निर्मित मन्दिरका जीर्णोद्धार किया। गोठोके सदस्योके नाम पक्ति २२मे गिनाये है। लेखके पहले भागमे जो ४० श्लोकोकी प्रशक्ति है वह सूर्याचार्यने लिखी थी। लेखके अन्तमे केशवसूरिका उल्लेख है]
[ए. इ० १० १० १७ ]
विलपक्कम (नि उत्तर अर्काट, भद्रास)
सन् १४५, समिर नागनाथेश्वर मन्दिरके आगे पढी हुई शिलापर [यह लेख चोल राजा मदिरकोण्ड परकेसरिवर्मन् (परान्तक १ ) के राज्यके ३८ वें वर्षमे लिखा गया था। तिरुप्पान्मलके आचार्य अरिष्टनेमिकी एक शिष्याके द्वारा एक कुआं बनवानेका इसमें उल्लेख है।]
[इ० म० उत्तर अर्काट २१६]