Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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प्रथम अध्याय ।
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खरोंकी सन्धि । स्वर सन्धि के मुख्यतया ५ भेद हैं:
प्रथम भेद-दीर्घ ।
दो शब्दों का स्वरों- कौन कौन स्वर मिलपरिभाषा॥ द्वारा मिलाप।
कर क्या हुआ। जब समान दो स्वर क्रोध+अग्नि-क्रोधाग्नि । अ+अ-आ। ह्रस्व वा दीर्घ इकडे चन्द्र+आनन-चन्द्रानन। अ+आ-आ। होते हैं तो दोनों को निद्रा+अवस्था निद्रावस्था । आ+अ-आ। मिलाकर एक दीर्घ प्रति+इति-प्रतीति। इ+इ-ई। खर कर देते हैं । मही+इन्द्र-महीन्द्र। लघु+उपकार-लघूपकार। उ+उ%
Dऊ। स्वयम्भू+उदय-स्वयम्भूदय । ऊ+उ%ऊ। भू+ऊर्ध्व-भूर्व।
ऊ+ऊ-ऊ । पितृ+ऋण पितृण।
ऋ+ऋ-ऋ । दूसरा भेद-गुण।
दो शब्दों का स्वरों कौनरस्वर मिलपरि नापा ॥
द्वारा मिलाप । कर क्या हुआ ॥ ह्रस्व वा दीर्घ अकार गज+इन्द्र-गजेन्द्र। अ+इ-ए। से परे ह्रस्व वा दीर्घ वीर+ईश-वीरेश
अ+ई-ए। इ, उ, ऋ रहें तो स्वर+उदय-स्वरोदय। अ+उ=ओ। अ+इ=ए, अ+उ% मुख+ऊपर-मुखोपर। अ+ऊ-ओ। ओ, अ+ऋ-अर, महा+उत्सव महोत्सव । आ+उ-ओ। होता है ॥
राज+ऋषि-राजर्षि । अ+ऋ-अर् । महा+ऋषि-महर्षि। आ+-भर ॥ तीसरा भेद-वृद्धि।
दो शब्दों का स्वरों कौनरस्वर मिलपरिभाषा ॥ द्वारा मिलाप ॥ कर क्या हुआ ॥ ह्रस्व वा दीर्घ अ से परे परम+एक-परमैक । अ+ए-ऐ। ए, ऐ, ओ, औ, रहे तो देव+ऐश्वर्य=देवैश्वर्य। अ+ऐ-ऐ अ+ए वा अ+ऐ ऐ, परम+ओषधि-परमौषधि। भ+ओ-औ । अ+ओ वा अ+औ- महा+औषध-महौषध ॥ आ+औ=औ॥ औ, हो जाता है ।
१-जब दो वर्ण आपस में मिलते हैं उस को सन्धि कहते हैं ।
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