Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 27
________________ अच्युता-अजित जैन पुराणकोश :९ पुण्डरोकिणी नगरी के राजा वज्रसेन और उनकी श्रीकान्ता नामा रानी का पुत्र हुआ। मपु० १०.१५०, ११.१० पहले पूर्वभव में यह अहमिन्द्र हुआ था। मपु० ११.१६०-१६१ वर्तमान पर्याय में भरतेश द्वारा आधीनता स्वीकार करने के लिए कहे जाने पर विरक्त होकर इसने वृषभदेव से दीक्षा धारण कर ली थी। भरतेश के मोक्ष जाने के बाद इसने भी मोक्ष पाया । मपु० ३४.९०-१२६, ४७.३९८-३९९ अच्युता-सोलह निकायों को विद्याओं में से एक विद्या । हपु. २२.६१-६५ अच्युतेश-अपराजित बलभद्र का जीव । मपु० ६३.३१ अज-(१) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३०, २५.१०६ (२) राजा पृथु का पुत्र, पयोरथ का पिता । पपु० २२.१५४-१५९ (३) यज्ञकार्य में व्यवहृत इतना पुराना धान्य जो कारण मिलने पर भी अंकुरित न हो सके । पपु० ११.४१-४२, ४८, हपु० १७.६९ (४) एक चतुष्पद प्राणी-बकरा। यज्ञ के प्रकरण में इस शब्द को लेकर बड़ा विवाद हुआ था। मपु० ४१.६८, पपु० ११.४३, हपु० १७.९९-१०५ अजन्मा--सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०६ अजमेष-महाकाल देव द्वारा चलाया गया एक हिंसामय यज्ञ । हपु० २३.१४१ अजर-(१) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३४, २५.१०९ (२) जरा अवस्था से रहित देव और सिद्ध । अजरता की प्राप्ति । के लिए 'अजराय नमः' इस पीठिका मन्त्र का जप किया जाता है। मपु० ४०.१५ अजरा-रावण को प्राप्त एक महाविद्या । पपु० ७.३२८-३३२ अजयं-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०९ अजा खुरी-सुराष्ट्र देश की राजधानी । इसी नगरी के राजा राष्ट्रवर्द्धन की पुत्री सुसीमा को कृष्ण हरकर द्वारिका लाये थे। हपु० ४४.२६-३२ अजात-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १७१ अजातशत्रु-जरत्कुमार के वंशज और कलिंग देश के हरिवंशी राजा कपिष्ट का पुत्र । यह शत्रुसेन का पिता था । हपु० ६६.१-५ अजितंजय-(१) तीर्थकर महावीर का प्रमुख प्रश्नकर्ता । मपु० ७६. ५३२-५३३ (२) महावीर-निर्वाण के सात सौ सत्ताईस वर्ष पश्चात् हुआ इन्द्रपुर नगर का एक राजा । हपु० ६०.४८७-४९२ (३) कंस का एक धनुष । इस धनुष को चढ़ानेवाले को कंस के ज्योतिषी ने उसका बैरी बताया था । हपु० ३५.७१-७७ (४) भरत चक्रवर्ती का दिव्यास्त्रों से युक्त, स्थल और जल पर समान रूप से गतिशील, दिव्याश्ववाही, चक्रचिह्नांकित ध्वजाधारी, दिव्य सारथी द्वारा चालित, हरितवर्ण का एक रथ । अपरनाम अजितंजित । मपु० २८.५६-५९, ३७.१६०, पु० ११.४ (५) अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा और उसकी रानी सुप्रभा का चक्रवर्ती पुत्र, अपरनाम पिहितास्रव । इसने बीस हजार राजाओं के साथ मन्दिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षा ली थी तथा अवधिज्ञान और चारणऋद्धि प्राप्त को थो । मपु० ७.४१-५२ (६) सुसोमा नगर का स्वामी । मपु० ७.६१-६२ (७) पुष्कराद्ध द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचयपुर नगर का राजा । वसुमतो इसको रानी और युगन्धर इसका पुत्र था । मपु० ७.८९-९१ (८) भरत चक्रवर्ती का पुत्र । यह जयकुमार के साथ दीक्षित हो गया था। मपु० ४७.२८१-२८३ (९) धातकीखण्ड द्वीप के भरत क्षेत्र के अलका देश की अयोध्या नगरी का राजा । इसकी अजितसेना नाम की रानी और अजितसेन नाम का पुत्र था। विरक्त होकर इसने अपने पुत्र को राज्य दे दिया। फिर स्वयंप्रभा तीर्थेश से अशोक वन में दीक्षित होकर यह केवली हुआ । मपु० ५४.८७, ९२-९५ (१०) गांधार देश के गांधार नगर का राजा। इसकी अजिता नाम की रानी और ऐरा नाम की पुत्री थी। मपु० ६३.३८४-३८५ (११) सिंह पर्याय में महावीर के धर्मोपदेशो चारण-ऋद्धिधारी मुनि । ये अमितगुण नामक मुनि के सहगामी थे। महावीर के जीव ने सिंह पर्याय में इनके सदुपदेश से प्रभावित होकर श्रावक के व्रत धारण किये थे तथा अनशन पूर्वक व्रतों का निर्वाह करते हुए मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नामक देव हुआ था। मपु० ७४.१७१-१९३, वीवच० ४.२-५९. अजितंजित-चक्रवर्ती भरत का इस नाम का एक रथ । हपु० ११.४ अजितंघर-आठवाँ रुद्र । यह अनन्तनाथ तीर्थकर के तीर्थ में हुआ था। आजतघर हपु०६०.५३६ दे० रुद्र अजित-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु. २५.१६९ (२) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३५ दे० जरासन्ध (३) वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों में दूसरे तीर्थकर । ये जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में साकेत नगरी के इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री राजा जितशत्रु और रानी विजयसेना के पुत्र थे। ये ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन सोलह स्वप्नपूर्वक माता के गर्भ में आये और माघ मास के शुक्लपक्ष की दशमी (हरिवंशपुराण के अनुसार नवमी) प्रजेशयोग में आदिनाथ के मोक्ष जाने के पश्चात् पचास लाख करोड़ सागर वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद अवसर्पिणी काल के दुषमा-सुषमा नामक चौथे काल में जन्मे थे। मपु० २.१२८,४८.१९-२६, हपु० १.४, ६०.१६९, वीवच० १८. १०१-१०५ जन्मते ही इनके पिता समस्त शत्रुओं के विजेता हुए थे अतः उन्होंने इन्हें इस नाम से सम्बोधित किया था। सुनयना और नन्दा इनकी दो रानियाँ थीं। दुर्वादियों से ये अजेय रहे। इनकी आयु बहत्तर लाख पूर्व थी। शारीरिक अवगाहना चार सौ पचास धनुष तथा वर्ण-तपाये हुए स्वर्ण के समान रक्त-पीत था। आयु का चतुर्थांश बीत जाने पर इन्हें राज्य मिला था। ये एक पूर्वांग तक राज्य करते रहे। इसके Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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