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प्राचीन मैसूरकी एक झलक ।
दशवीं शताव्दिके हैं। इसमें अब कोई संदेह नहीं है कि यह हिन्दूमंदिर एक या अधिक जैनमंदिरोंके पत्थरोंसे बनाया गया है । कालकी गति बड़ी विचित्र है ।
शालिग्राम ——यह एक प्राचीन ग्राम है। सुना जाता है यहाँ पर रामानुजाचार्य आये थे और एक मंदिरमें उनकी मूर्ति भी यहाँ स्थापित है । यहीं पर दो जैनमंदिर भी हैं । एक तो नवीन है जिसको बने हुए केवल ४० वर्ष हुए हैं और दूसरा प्राचीन है, जो एक किले के भीतर बना है । इसमें अनन्तनाथजीकी प्रतिमा पर एक लेख है. जो कुछ कुछ मिट गया है । इसमें एक चतुर्विंशतितीर्थंकर प्रतिमा है. जिसमें बीचकी प्रतिमा खड्डासनस्थ है। बहुत - अच्छी बनी हैं। इस प्रतिमाके पीछे एक प्राचीन लेख है । इस बस्ती अर्थात् मंदिरमें जो जैनप्रतिमाओंका समूह है वह ऐसा शोभायमान है कि देखते ही बनता है । अन्य प्रतिमाओंके सिंहासनों पर भी कई लेख मिले हैं। घंटों पर भी लेख मिले हैं। इस ग्रामसे पूर्वकी ओर कुछ दूरी पर एक चट्टान है; इसे गुरुगलरे ( गुरुकी चट्टान ) कहते हैं । इस चट्टान पर दो चरणपादुकायें बनी हैं। श्रीवैष्णव कहते हैं कि ये रामानुज आचार्यके चरण हैं और जैनी इनको अपने गुरुके चरण बताते हैं । जैनी इनकी पूजा विशेष कर विवाह इत्यादिके अवसरों पर करते हैं । इसके उत्तरकी ओर एक लेख मिला है, जिसमे अब मालूम हो गया है कि ये चरणपादुकायें जैनगुरु श्रेयोभद्रकी हैं । यहाँके कुछ जैनियोंको अब तक यह विश्वास था कि ये चरण रामानुजाचार्यके हैं और कुछ वर्ष
हुए
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