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४ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
का सूचक है। वस्तुतः यह शब्द मनुष्य के मानसिक कुशल-क्षेम का सूचक है । 'कि जवणिच्च' का अर्थ है आपकी मनोदशा कैसी है ? अतः यापनीय शब्द मनोदशा ( Mood ) या मानसिक स्थिति ( Mental State ) का सूचक है । इस शब्द का प्रयोग मन की प्रसन्नता को जानने के लिए प्रश्न के रूप में किया जाता था ।
पालो साहित्य में भी इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में हुआ है । भगवान् बुद्ध का अपने ग्राम में आगमन हाने पर भृगु, भगवान् से पूछते हैं कि हे भिक्षु ! आपका क्षमा-भाव कैसा है ? आपका यापनोय कैसा है ? आपको आहार आदि के लाभ में कोई कठिनाई तो नहीं हैं ? प्रत्युत्तर में भगवान् बुद्ध ने कहा, मेरा क्षमा-भाव ( क्षमनीय ) अच्छा है, मेरा यापनोय सुन्दर है । मुझे आहार-लाभ में कोई कठिनाई नहीं है' । इस प्रकार यहाँ भी यापनीय शब्द जीवन यात्रा के कुशल-क्षेम के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त हुआ है । 'कच्चि यापनीयं' का अर्थ है आपकी जोवन यात्रा कैसी चल रही है ?
इस प्रकार हम देखते हैं कि जहाँ पाली साहित्य में 'यापनीय' शब्द जीवन यात्रा के सामान्य अर्थ का सूचक है, वहाँ जैन साहित्य में वह इन्द्रियों एवं मन की वृत्तियों या मनोदशा का सूचक है, भगवता और ज्ञाताधर्मकथा में 'इन्द्रिय-यापनीय' और 'नो इन्द्रिय-यापनीय' को स्पष्ट करते हुए यही बताया गया है कि जिसकी इन्द्रियाँ स्वस्थ और नियन्त्रण में हैं तथा जिसका मन वासनाओं के आवेग से रहित एवं शान्त हो चुका है, ऐसे नियन्त्रित इन्द्रिय और मनवाले व्यक्ति का यापनीय कुशल है । यद्यपि जहाँ 'यापनीय' शब्द इन्द्रिय और मन को वृत्तियों का सूचक है, किन्तु अपने मूल अर्थ में तो यापनीय शब्द व्यक्ति को 'जीवन यात्रा' का ही सूचक है । व्यक्ति को जीवन यात्रा के कुशलक्षेम को जानने के लिए ही उस युग में यह प्रश्न किया जाता था कि आपका यापनोय केसा है ? बौद्ध परम्परा में इसी अर्थ में यापनीय शब्द का प्रयोग होता था किन्तु जैन परम्परा ने उसे एक आध्यात्मिक अर्थ प्रदान किया था । ज्ञाताधर्मकथा एवं भगवती में महावीर ने 'यात्रा' का ज्ञान, दर्शन और चारित्र १. आयस्मंतं भगु भगवा एतदवोच - " कच्चि, भिक्खु, खमनीयं कच्चि यापनीयं कच्चि पिण्डकेन न किलमसी" ति ? खमनीयं भगवा, यापनीयं, भगवा, न चाहं, भन्ते पिण्डकेन किलमामीति ।
महावग्गो १०-४-१६
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