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कारण यह शब्द विशेषण भी है और आचरण की महत्ता के कारण क्रिया का परिचायक भी । इसी प्रकार धर्म शब्द को भी समझने का प्रयास करेंगे तो स्पष्ट होगा कि किसी भी वस्तुको उसके यथा स्वरुप और गुणों के रुप में ही जानना और मानना सो धर्म है । यों भी कहा जा सकता है कि वस्तु के मूल स्वरूप को समझना और उसका ग्रहण करना ही धर्म है। वैसे धर्म शब्दकी अनेक व्याख्यायें की गई हैं जिनकी विशद चर्चा आगे की जायेगी । पर, यहां इतना ही समझना है कि 'जिनों द्वारा कथित और प्रणीत तत्वों को जानना, समझना और श्रद्धा करना ही धर्म है । इस प्रकार जौनधर्म का यह अभिप्रेत अर्थ किया जा सकता है कि जितेन्द्रीय पुरुषों द्वारा प्रणीत तत्वों का स्वीकार और आचरण ही 'जैनधर्म का स्वीकार व आचरण है।
- इस देश में जितने विरोधों का सामना 'जैनधर्म को करना पढ़ा शायद ही किसी धर्म को करना पडा हो । पर, इस विरोध ने उसे अधिक दृढ़ बनाया यह सत्य है कि उसका प्रचार संख्या की द्रष्टि से कम हुआ, परंतु जितना हुआ, उतना पूर्णतया ही हुआ । 'जैनधर्म के सिद्धांत इतने वैज्ञानिक एवं प्रयोगसिद्ध रहे कि कालातीत होकर भी वे उतने ही चिर नवीन हैं। यही कारण हैं कि 'धर्म' शब्द सदैव स्थिर एवं स्पष्ट रहा ।
धर्म क्या है ? -
... वर्तमान समय में धर्म शब्द क्रियाकांड का पर्यायवाची बनकर रह गया है। उदाहरण के तौर पर रात्रि भोजन न करना, कंदमूल न खाना, उपवास या पूजा करना आदि । स्थूल रूप से इसे धर्म
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