Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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हिंसा खुद करते हैं
की रक्षा और पंचेन्द्रिय के हित के लिए एकेन्द्रिय जीवों की । गृहस्थ को तो केवल त्रसकायिक हिंसा का ही त्याग होता है, परन्तु साधु को तो जीव मात्र छहों काय के जीवों की हिंसा का त्याग है । ऐसा त्याग होने पर भी वे पंचेन्द्रिय के हित और पंचेन्द्रिय को रक्षा के लिए एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा करते हैं । जो बताया जाता है ।
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शास्त्रानुसार हाथ-पैर के हिलने मात्र से वायुकायिक असंख्य जीव नष्ट होते हैं। यह बात तेरह पन्थियों को भी स्वीकार है । ऐसा होते हुए भी वे प्रतिलेखन ( वस्त्र पात्रादि का ) करते हैं, यह क्यों ? वस्त्र पात्रादि का प्रतिलेखन करके उसमें रहे हुए नसकायिक जीवों को ही बचाया जाता है या और कुछ ? प्रति लेखन करने का उद्देश्य ही क्या है ? यदि सकायिक जीवों की रक्षा करना उद्देश्य नहीं है तो फिर प्रति लेखन ही क्यों किया जाता है और वायुकायिक जीवों को व्यर्थ हिंसा क्यों की जाती
९ प्रतिलेखन करते हुए त्रस जीवों को वस्त्रादि में से अलग किया जाता है, इससे स्पष्ट है कि त्रस जीवों की रक्षा के लिए ही प्रतिलेखन किया जाता है, परन्तु प्रतिलेखन करने में कितने वायुकायिक जीवों की हिंसा हुई ? तब आपने असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा द्वारा कुछ थोड़े से त्रस जीवों को ही बचाया था और कुछ किया ?