Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
View full book text
________________
किसी को आहार पानी न दूंगा, न उनका स्वागत सत्कार ही करूँगा श्रादि। ऐसा उदाहरण देकर तेरह-पन्थी लोग इस पर से यह दलील करते हैं, कि यदि साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देना तथा खिलाना-पिलाना या स्वागत सत्कार करना पाप न होता, तो
आनन्द श्रावक ऐसा अभिग्रह क्यों लेता १ और भगवान महावीर ऐसा अभिप्रह क्यों कराते ? आदि ।
इस तरह मानन्द प्रावक के अभिग्रह के नाम से साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देना पाप बताते हैं। यद्यपि आनन्द श्रावक ने जो अमिमह लिया था, वह अन्य युयिक साधुनों को गुरु बुद्धि से दान देने के विषय में ही लिया था, ऐसा तेरह पन्थियों के सिवाय वे सभी जैन मानते हैं-जो उपासक दशांग सूत्र को मानने वाले हैं, परन्तु यह बात तेरह-पन्थियों को स्वीकार नहीं है। वे इस सम्बन्ध में बहुतसी दलीलें करते हैं,
और कहते हैं कि आनन्द श्रावक का अभिग्रह साधु के सिवाय सब के लिए था।
हम इन दलीलों में अभी न पड़ कर, आनन्द .श्रावक के चरित्र से ही यह सिद्ध करते हैं कि साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देना या मित्र, झाति, कुटुम्बी, स्वजन, सम्बन्धी आदि को खिलाना-पिलाना या देना लेनां पाप नहीं है। हम जो छ 'कहेंगे, उससे यह भी स्पष्ट हो जावेगा कि वास्तव में प्रानन्द