Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( १२२ ) - यह तेरह-पन्थ को उक्त कथन बिल्कुल झूठ और शास्त्र विरुद्ध है, यह सिद्ध करने के लिए हम एक ही ऐसा प्रमाण देते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जावेगा, कि साधु का कर्तव्य मारने वाले तथा मरने वाले दोनों ही के कल्याण के लिए उपदेश देना है। इसी प्रकार श्रावक का भी कर्तव्य है कि वह मरते और कष्ट पाते हुए जीव को बचाने और कष्ट मुक्त करने का प्रयत्न करे।
'राय प्रसेणी' सूत्र में राजा प्रदेशी का वर्णन आया है। सूत्रानुसार, राजा प्रदेशी नास्तिक था। वह 'आत्मा नही है' ऐसा मानता था। इस कारण वह अनेक द्विपद ( मनुष्य पत्नी आदि), चौपद ( पशु आदि ), मृग पशु पक्षी और सरीसप ( साँप आदि पिना पाँव के जीव) को मार डालता था। ब्राह्मण भिक्षुक आदि की भीम भी छीन लेता था, तथा अपने समस्त राज्य को उसने बहुत दुःखी कर रखा था।
प्रदेशी राजा के चित्त नाम के प्रधान, ने जो बारह व्रतधारी श्रावक था। राजा प्रदेशी द्वारा होने वाले अत्याचारों से जनता को बचाने के लिए केशी स्वामी से कहा, कि हे देवानु प्रिय ! आप यदि राजा प्रदेशी को धर्म सुनावे, तो प्रदेशी राजा को, तथा (उसके हाथ से मारे जाने वाले) बहुत से द्विपद, चौपद, मृग, पशु, पक्षी और सरीसृप को बहुत गुणयुक्त फल (लाभ) होगा। हे देवानुप्रिय! आप यदि राजा प्रदेशी को धर्म