Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
View full book text
________________
. ( १२३ ) सुनावें, तो प्रदेशी राजा के साथ ही बहुत से श्रमण, माहण और भिक्षुकों को गुणयुक्त फल (लाम) होगा; और इसी प्रकार हे देवानु प्रिय ! राजा प्रदेशी के साथ ही समस्त जनपद (सम्पूर्ण राज्य ) को बहुत लाभ होगा।
केशी श्रमण से यह प्रार्थना उस चित्त प्रधान ने की थी, जो बारह व्रतधारी श्रावक था, और धर्म अधर्म को अच्छी तरह जानता था। चित्त प्रधान श्रावक था, यह बात 'राय प्रवेणी' सूत्र में स्पष्ट कही है, और 'राय प्रसेणी' सूत्र से यह भी स्पष्ट है, कि चित्त प्रधान की इस प्रार्थना को स्वीकार करके ही केशी स्वामी ने श्वेतम्धीका पधार कर राजा प्रदेशी को धर्म का उपदेश दिया था, तया उसको श्रावक बनाया था। यदि मरते हुए जीव को बचाना अथवा कष्ट पाते हुए को कष्ट मुक्त करना कराना पाप होता, तो चित्त प्रधान, जो श्रावक था, इस तरह का पाप-कार्य करने कराने के लिए केशी स्वामी से प्रार्थना ही क्यों करता, और केशी स्वामी चित्त प्रधान की यह प्रार्थना स्वीकार ही क्यों करते?
शास्र के इस वर्णन से भी यह स्पष्ट है, कि मरते हुए जीव को बचाने तथा कष्ट पाते हुए जीव को कष्ट मुक्त करने के लिए उपदेश देना साधु का कर्तव्य है और इसी प्रकार श्रावक का भी यह कर्तव्य है, कि वह मरते हुए जीव को बचाने तथा कष्ट पाते हुए जीव को कष्ट मुक्त करने का प्रयत्न करे। यदि ऐसा न