Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( १६७ ) चन्द नहीं कर सकते और जब दुनिया की तरफ देखते हैं, दुनिया को जटिल समस्याओं पर गौर करते हैं, तो यह महसूस किये विना भी नहीं रह सकते कि उनको मिलने वाले उपदेश उन्हें हास की ओर ले जा रहे हैं। आज के युवक को मन्दिरों के साज शृंगार अच्छे नहीं लगते हैं, न इन सफेदपोश रूढ़िगामी मुफ्तखोरों की सादगी ही पसन्द पाती है। वह तो जीवन का पुजारी है, मानवता का भक्त है और विश्व-प्रेम का प्रेमी है। आज आपने जिस थली में निराशा के बादल घिरे हुए देखे हैं, उसी में कुछ वर्षों बाद आप वह जबर्दस्त विचार क्रांति देखें तो कोई आश्चर्य नहीं, जो वर्षों तक दवे हुए विचारों में से उत्पन्न होती है। 'तरुण जैन ने दो वर्षों में थली में बहुत बड़ा काम किया है, जिसका वास्तविक मूल्य आज नहीं समझा जा सकता, पर उस दिन मालूम होगा, जब कि थलो की काया पलट होगी। मैं । 'तरुण जैन का इसी शुभ कामना के साथ, नये वर्ष के प्रारम्भ में अभिनन्दन करता हूँ।
आपका-'भन्न हृदय