Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
View full book text
________________
( १४० ) छाछ पिलाने में भी पाप मानते हैं। साधु के सिवाय किसी को कुछ भी देने या वचाने में एकान्त पाप मानते हैं ।
तेरह-पन्यो कहते हैं कि 'एक विल्टी चूहे को मारना चाहती है। यदि चूहों को बचाने के लिए मिट्टी को हॉका जाता है, तो विल्ली मूखी रहती है और उसको अन्तराय लगती है। इसी से हम कहते हैं कि किसी को बचाने में धर्म पुण्य नहीं है।'
हम तेरह पन्थियों की इस युक्ति का यह उत्तर देते हैं कि यदि किसी आदमी ने विल्ली को भी दूध पिला दिया और चूहे को भी बचा दिया, वो इसमें क्या पाप हुआ? दोनों ही बचे हैं।
तेरह-पन्थी कहते हैं कि 'एक गाय प्यासी बंधी हुई थी। एक आदमी ने दया लाकर उस गाय को पानी पीने के लिए खोल दिया। वह गाय पानी पीने चली; परन्तु एक दूसरे आदमो ने सोचा कि यह गाय इस तलैया में जा रही है। तलैया में पानी बहुत थोड़ा है, और मेंढक मछली बहुत है, जो गाय के पाँव से दब कर मर जावेंगे। ऐसा सोचकर उसने पानी पीने के लिए जाती हुई गाय को वापस हॉक दी, गाय को पानी नहीं पीने दिया। इस तरह एक आदमी ने तो गाय की दया की, पानी में के मेंढक मछली की दया नहीं की और दूसरे भादमी ने मेंढक मछली की दया की,