Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( १३९ ) उसकी पत्नी तथा व्यभिचारिणी स्त्री तीनों का हित हुआ। इसमें पाप क्या हुआ ?
- दया को हृदय से निकालने के लिए तरह-पन्थी लोग एक यह युक्ति देते हैं कि
'एक खड़े में थोड़ासा पानी है, जिसमें बहुत सी मछलियाँ भरी हुई हैं। एक प्यासी भैंस पानी पीने के लिए आई। एक मादमी जो वहाँ खड़ा है, और खड़े में पानी थोड़ा तथा मछली मेंढक बहुत होने की बात जानता है, यदि भैंस को. हॉकता है, तो भैस प्यास की मारी मरती है, और नहीं हॉकता है, तो खड़े में की मछलियाँ, भैंस के पैरों से मरती हैं। एक ओर एया करने पर दूसरी ओर हिंसा होती है। इसी से हम कहते हैं कि संसार में तो ऐसा चलता ही रहता है। अतएव अपने को न तो, भैंस. पर ही दया करनी चाहिए, न मेंढक मछली पर, किन्तु मौन रखना चाहिए।' ___ यह तेरह-पन्थियों की युक्ति है। इसका जवाब हम इस रूप में देते हैं, कि यदि उस आदमी ने छाछ या धोवण पिलाकर भैंसा की प्यासः भी मिटा दी और खड्डे में के मेंढक मछली को भी बना दिया, तो यह तो ठीक हुआः मानोगे ना? उसनें. दोनों ही पर दया की, इसमें तो पापा नहीं हुआ ? किन्तु। तेरह-पन्थी तो