Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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है; और यह आत्म कल्याण भी जरा विचारने की चीज है;
अगर पास की
जो अन्य किसी भी चीज से मेल नहीं खाता। झोंपड़ी में ही एक अनाथ बालक रुग्णावस्था को वेदना से कराह रहा हो तो भी ये आत्म-कल्याणी साधु उसकी सेवा करने जाकर अपने आत्म कल्याण को खण्डित नहीं कर सकते; क्योंकि उनके शास्त्र में रोगो की सेवा करना आत्म-कल्याण का रास्ता नहीं बताया है |
इस तरह की जड़ बुद्धि से जहाँ सारा जीवन व्यापार चल रहा है, वहाँ किस साधुता को परिक्षा करूँ ? यह कहे जाने पर कि 'मीठों के वस्त्र में ज्यादा हिंसा होती है, इसलिए आपको खादी ही काम में लानी चाहिये ।' तब यह जवाब मिला कि 'हमारे लिए तो दोनों (वस्त्र) हिंसा से मुक्त हैं क्योंकि वे हमारे लिए तैयार नहीं किये गये हैं' तो उनकी बुद्धि पर तरस आये बिना नहीं रह सका । ऐसे ही लोगों के लिए और इसी तरह का तर्क किये जाने पर रूस के महान विचारक टाल्सटाय ने लिखा
होगा । कि " मनुष्य कहीं भी और किसी रूप में रहता हो, पर
यह निश्चित है कि उसके सिर पर जो
मकान की छत है, वह स्वयं नहीं बनी, चूल्हे में जलने वाली लकड़ियाँ भी अपने आप वहाँ नहीं पहुँच गई, न पानी बिना लाए स्वयमेव आगया और पकी हुई रोटियाँ भी आसमान से नहीं बरसीं । उनका खाना,
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