Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( १०८ ) जो जीव वचाया धर्म हुए, ओ तो देवता रे आसानजी । अनन्त जीव वचाय ने वाणी सफल करता देव आनजी । असंयति जीव चचावियाँ वले असंयति ने दिया दानजी । इम करता वीर वाणी सफली हुए ओ तो देवता रे आसानजी ।
श्रर्थात् - यदि जीव बचाने में धर्म होता, तो यह कार्य तो देवताओं के लिए सरल था । देवता अनन्त जीवों को बचाकर भगवान महावीर की वाणी सफल कर देते । असंयति जीव को बचाने और असंयति जीव को दान देने से यदि भगवान महावीर की वाणी सफल हो सकती, तो ये फार्य देवताओं के लिए आसान थे। देवता, इन कामों को करके धर्म के आचरण द्वारा भगवान महावीर की वाणी सफल कर सकते थे ।
परन्तु उन लोगों को यह मालूम नहीं है कि भगवान महावीर की प्रथम वाणी खाली क्यों गई ? भगवान महावीर को जिस समय केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ, वह सन्ध्या का समय था, भर जंगल था । भगवान ने केवल ज्ञान होते हो वाणी फरमाईउस समय मनुष्य मनुष्यणो और तिर्यच तिर्रचणी नहीं थे । इसलिए जैसा कि भगवान ने धर्म के दो भेद करके भागार चोर अणगार धर्म का प्रतिपादन किया, उस त्याग प्रत्याख्यान रूप चारित्र धर्म को किसी ने अंगीकार नहीं किया था, इस अपेक्षा से