Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( ११८ ) प्राणाणुकम्पयाए भूयाणुकम्पयाए जोवाणुकम्पयाए . सत्वाणुकम्पयाए ।
अर्थात्-प्राणी भून जीव और सत्व की अनुकम्पा से तुझे सम्यक्त्व और मनुष्य जन्म श्रादि मिला।
भगवान महावीर ने यह नहीं कहा, कि तेरे मण्डल में दूसरे जो जीव आकर रहे थे, उनके वचने से तुझे पाप हुआ। इसके सिवाय शास्त्र के पाठानुसार हाथी ने एक योजन का मण्डल बनाया था। उस एक योजन (चार कोस ) के मण्डल में दावानल से वचने के लिए इतने जीव पाकर घुस गये थे कि कहीं थोड़ी भी जगह शेष नहीं रही थी। इसीसे शशक इधर उधर मारा मारा फिरता था, उसको वैठने को जगह न मिली थी, और इतने ही में हाथी ने अपना पैर खाज खनने को उठाया, उस खाली जगह में शशक वैठ गया।
बुद्धि से विचारने की बात है कि हाथी के उस मण्डल में कितने जीवं बचे होंगे? हाथी ने अपने मण्डल में उन असंख्य जीवों को आश्रय दिया, इस कारण तेरह पन्थियों की मान्यता. नुसार तो हाथी को कितना पाप लगना चाहिये। थोड़ी देर के लिये तेरह-पन्थियों का यह कथन मान भी लें कि एक शसले को न मारने से हो, हाथी को मेघकुमार का भव प्राप्त हुभा था, तो इसके साथ ही यह भी मानना होगा, कि हाथी के मार में.