Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( ११७ ) अति रमणीये काव्ये पिशुनो दूषणमन्वेषयति । अति रमणीये वपुषि व्रणमिव मक्षिका निकरः॥
अर्थात-अच्छे रमणीय काव्य में भी धूत लोग उसी प्रकार दोष को खोजा करते हैं, जिस प्रकार बहुत रमणीय शरीर में भी मक्खी फेवल घाव हो खोजा करती है। .
इसके अनुसार सर्वज्ञों के प्रतिपादित करुणा से भरे हुए शास्त्रों में भी तेरह-पन्थी लोग केवल 'पाप ही पाप' खोजा करते हैं। ऐसा करने का कारण या तो उनका स्वभाव ही ऐसा है, अथवा उनकी अपने मत के प्रचार की स्वार्थ बुद्धि है। यदि ऐसा न होता, तो तेरह-पन्थी लोग क्ष्या और दान में पाप सिद्ध करने के लिए महापुरुषों द्वारा छोड़े गये आदर्शों को विकृत बनाने का प्रयत्न ही क्यों करते ? ___ यद्यपि तेरह-पन्थियों की मेषकुमार के चरित्र के विषय में दो जाने वाली दलील विलकुल ही व्यर्थ है, फिर भी बेसमझ लोगों को भ्रम से बचाने के लिए हम उनकी दलील का संक्षिप्त उत्तर देते हैं।
शास्त्र में ऐसा कहीं नहीं आया है, कि हाथी ने एक शसले को नहीं मारा था, इसीसे उसको मनुष्य-जन्म आदि प्राप्त हुआ या। इसके लिये भगवान महावीर ने स्पष्ट ही कहा है कि