Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( ११६ ) जाता है, कि तेरह-पन्थियों की इस विषयक दलीलें झूठो हैं, लोगों को भ्रम में डालने के लिए है, और इस तरह लोगों के हृदय में से करुणा निकालने के लिए हैं। , जीव को बचाना पाप नहीं है, किन्तु अनुकम्पा है। रक्षा है,
यह बात 'झाता सूत्र में मेधकुमार के अधिकार से भी सिद्ध है। 'ज्ञाता सूत्र में कहा गया है कि भगवान महावीर ने मेघकुमार से स्पष्ट ही कहा था, कि हे मेघकुमार! तूने हाथी के भव में प्राणभूत जीव सत्व की अनुकम्पा की थी, उस शशले की रक्षा के लिए तो बीस पहर तक पैर ऊँचा रखकर अपने शरीर का ही बलिदान कर दिया था, इसीसे समकित रत्न प्राप्त हुआ, संसार 'परिमित हुवा, मनुष्य जन्म, राजसी वैभव आदि प्राप्त हुवे और अन्त में तू संयम ले सका। यदि जीव-रक्षा में पाप होता, वो भगवान महावीर जीव-रक्षा का यह परिणाम क्यों बताते ? ____ मेधकुमार के उदाहरण के लिए भी तेरह-पन्थी लोग एक व्यर्थ की दलाल करते हैं। वे कहते हैं कि मेधकुमार ने हाथो के 'भव में शसले को नहीं मारा था, इसीसे उसको मनुष्य जन्म '. मांदि मिला, परन्तु हाथी के मण्डल में जो बहुत से जावों ने आकर 'आश्रय लिया था, उससे तो हाथी को पाप ही लगा। समझ में . नहीं आता.कि तेरह-पन्थी लोग यह दलील किस आधार पर खड़ी करते हैं। एक कवि ने कहा है