Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( १०९ ) वाणी खाली गई मानी है, न कि दान पुण्य या जीव-रक्षा की अपेक्षा से । इस पर से प्राणी-रक्षा या दान देना निषिद्ध नहीं हो सकता। यह उदाहरण दया दान उठाने की कुयुक्ति रूप है।
यदि जो काम देवता नहीं करते, मनुष्यों के लिए भी वह काम करना निषिद्ध है, पाप है, तो देवता लोग साधुओं को आहार पानी, वन पात्र आदि भी नहीं देते हैं। इसलिए मनुष्य के लिए भी साधु को आहार-पानी आदि देना निषिद्ध और पाप होगा। और यदि साधु को देवता लोग आहार-पानी नहीं देते, तब भी मनुष्य के लिए साधु को आहार-पानी आदि देना पाप नहीं है, अपितु लाभप्रद ही है, तो किसी मरते हुए जीव को बचाना तथा दीन दुःखी श्रादि को दान देना भी पाप कैसे हो सकता है ? जैन सिद्धान्त दीन दुःखी जीवों को दान देकर उनकी सहायता करने के वर्णन से भरे पड़े हैं। अनेकों उदाहरण विद्यमान है।
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