Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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किसी के लिए आधार कैसे माना जा सकता है ? आनन्द में ये
सभी बातें थीं, तभी तो वह सब के.लिए. आधार भूत था। : तेरह-पन्थी लोग इन सभी बातों को पाप मानते हैं। परन्तु यदि ये बातें पाप होती, तो आनन्द श्रावक इन सब बातों का भी त्याग कर देता। लेकिन आनन्द श्रावक जप तक संसार व्यवहार में रहा, तब तक सब के लिए आधार बना रहा, और संसार व्यवहार से निवृत्त होते समय उसने अपने लड़के को भी यही शिक्षा दी कि सब के लिए आधार बनकर रहना। इससे स्पष्ट है, कि आधार बनने के लिए, आनन्द में दूसरे को सहायता करना, दूसरे का दुःख मिटाना और दूसरे के प्रति उदारता पूर्ण व्यवहार रखना आदि जो बातें थीं, वे बातें पाप रूप नहीं थीं, किन्तुं पुण्यं रूप हो थीं।
- तेरह पन्थियों की मान्यतानुसार तो दाम लेकर असंयति का पोषण करना, पन्द्रह कर्मादानों में का एक कर्मादान है, यांनी अनाचरणीय पाप है, और विना दाम लिये भी असंयति का पोषण करना पाप है (जैसा कि हम पिछले कुपात्र सुपात्र के प्रकरण में तेरह-पन्थियों द्वारा शास्त्र के गल्त अर्थ करने के उदाहरणों में बता चुके हैं। लेकिन यदि तेरह पन्थियों का यह कथन सही होता, तो आनन्द श्रावक ऐसे पाप क्यों करता?
. . .. आनन्द श्रावक के विषय में एक बात यह भी ध्यान में रखने की है, कि आनन्द श्रावक ने मित्र ज्ञाति आदि को भोजन कराने