Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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श्रावक ने जो अभिग्रह किया था, लिए नहीं था किन्तु केवल अन्य युथिक साधुओं को दान देने आदि के विषय में ही था और वह भी केवल गुरु बुद्धि से
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आप आनन्द श्रावक के चरित्र को देखिये । " किसी समय आधी रात के पश्चात् धर्म जागरणा करते हुए आनन्द श्रावक ने इस प्रकार का अध्यवसाय ( विचार ) और मनोगत संकल्प किया कि मैं इस वाणिज्य प्राम नगर के बहुत से राज्याधिकारी एवं समस्त कुटुम्ब के लिए श्राधार भूत हूँ, इस कारण उनके कामों में पड़ने से मैं, भगवान महावीर के पास से जो धर्म स्वीकार किया है, उस धर्म को पूरी तरह पालने में समर्थ नहीं हूँ । इस लिए मैं कल सूर्योदय होने पर बहुतसा असन पान खाद्य और स्वाद्य ( भोजन, पेय, उपभोजन और स्वाद्य ) निपजाकर मेरे मित्र ज्ञाति आदि को जिमा कर तथा मित्र ज्ञाति और बड़े पुत्र को सम्मति लेकर, कोल्लाक सन्निवेश की पौषधशाला में भगवान महावीर से स्वीकृत धर्म का पालन करता हुआ विचरूँगा । इस तरह निश्चय करके आनन्द श्रावक ने सूर्योदय होने पर बहुतसी खानेपीने आदि की सामग्री बनवाई, और मित्र ज्ञाति तथा नगर के लोगों को बुलाकर उनको खिलाया पिलाया, तथा पुष्प - वस्त्र आदि से उन सब का सत्कार सम्मान किया । फिर उन सब के सामने अपने बड़े पुत्र को बुलाकर उससे कहा, कि हे पुत्र ! जिस प्रकार