Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
View full book text
________________
( २५ ) का कलेवर ही है। आपको दृष्टि में जीव जीव में तो अन्तर है ही नहीं। फिर गेहूँ, बाजरे का कलेवर न खाकर बकरे का कलेवर खाने वाले ने तो आपके सिद्धान्तानुसार बहुत जीवों की हिंसा ही टाकी है। एक जीव की हिंसा करके असंख्य जीवों की हिंसा से बचा है, फिर आपके सिद्धान्तानुसार नुसने क्या. बुरा किया ?
इस युक्ति पर से तेरह-पन्थी साधु यह हल्ला मचावेंगे कि जैन होकर इस तरह का उदाहरण देते हैं। शर्म भी नहीं जाती। परन्तु तेरह-पन्थियों को भी शर्म नहीं जाती, जो कहते हैं कि
(१) कबूतर को दाना डालना पाप है, क्योंकि प्रत्येक दाने में जीव है।
(२) किसी को पानी पिलाना पाप है, क्योंकि पानी की एक एक बूंद में असंख्य असंख्य जीव हैं।
(३) गायों को घास डालना, लंगड़े अन्धे को रोटी देना और माँ बाप की सेवा करना पाप है। (४) कसाई से गाय को छुड़ा देना पाप है।
तेरह-पन्थी लोग अपने आपको जैन और भगवान महावीर के अनुयायी बताकर जब. इस तरह के और ऐसे ही दूसरे कामों को पाप बताने में नहीं शर्माते, तब उन्हीं के सिद्धान्त पर दी गई दलील के विषय में वे क्यों चिढ़ते हैं १.