Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( ३४ ) . (८) बकरे के बध और व्यवसाय द्वारा आजीविका करने वाले को श्रावक क्यों नहीं बनाते ? • (९) पंचेन्द्रिय जीव की अपेक्षा एफेन्द्रिय जीव के हिंसक को अधिकाधिक नरक होना क्यों नहीं मानते १ - मतलब यह है कि एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव समान नहीं हैं। पंचेन्द्रिय जीव की रक्षा के सामने एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा महत्त्वपूर्ण नहीं है। क्योंकि धर्म का विधान करते हुए भगवान तीर्थङ्करों ने गृहस्थ के लिए स्थावर जीवों की पूर्ण दया अशक्य जानी, तब श्रावक व्रतों में त्रस जीव की हिंसा त्यागना आवश्यक बताकर उसे त्यागने का विधान किया है। इसलिए महा ज्ञानियों की दृष्टि में भी एकेन्द्रिय की अपेक्षा पंचेन्द्रिय की रक्षा विशेष महत्वपूर्ण है, और यह वात तेरह-पन्थियों के व्यवहार से भी सिद्ध है, जो ऊपर बताया गया है। इस सम्बन्ध में और भी बहुत-सी दलीलें देकर यह सिद्ध किया जा सकता है कि पंचेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा एकेन्द्रिय जीव की हिंसा को तेरह-पन्थी लोग भी उपेक्षणीय मानते हैं, परन्तु पुस्तक का कलेवर बहुत बढ़ जावेगा, इसलिए हम इतनी ही दलीलें देकर सन्तोष करते हैं । ओर इस प्रकरण को समाप्त करते हैं।