Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( ६० ) पात्र या अपान अपेक्षाकृत है, और 'सु' तथा 'कु' विशेषण-पात्र के लिए ही लगते हैं। सभी बातों के लिए न तो कोई पात्र है, न अपात्र है। ___ मतलब यह है कि जिसके लिए जो मर्यादा दे, वह मका पात्र है, और जिसके लिए जो मर्यादा नहीं है, वद इसका पात्र नहीं है, किन्तु उसके लिए अपात्र है। जो पात्र है, इसके द्वारा जब तक मर्यादा की सीमा का अनुकूल या प्रतिकूल उल्लंघन नहीं होता है, वह मर्यादा भीतर ही है, तब तक तो वह पात्र ही है। उसको न सुपात्र कहा जावेगा, न कुपात्र ही कहा जावेगा। लेकिन जब वह धनुकूल दिशा में मर्यादा का उल्लंघन करता है, यानी भागे बढ़ता है, तब उसे सुपात्र कहा जाता है और प्रतिकूल दिशा में मर्यादा का उल्लंघन करके आगे बढ़ता है, तो कुपात्र कहा जावेगा। जैसे पुत्र और अपुत्र, पुत्र तो आपका लड़का है, लेकिन अपुत्र आपका लड़का नहीं है। जो भापका बाग ही नहीं है, वह यदि आपको खाने को नहीं देता है, तो
आप उसको सुपुत्र न कहेंगे। इसफे विरुद्ध जो भापका लड़का है, वह जब तक अपने कर्त्तव्य का साधारण रोति से पाउन करता रहेगा, माप उसको पुत्र कहेंगे। जय वह अपने कर्तव्य का विशेषरूप से पालन करेया, तब आप उसको सुपुत्र कहेंगे और. जब वह अपने कर्तव्य की उपेक्षा करेगा, अपने कर्तव्य का