Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
View full book text
________________
( ७७ )
से यह सिद्ध करते हैं कि इस चौभंगी में कुपात्रदान को कुक्षेत्र कहा । कुपात्र रूप कुक्षेत्र में पुण्य रूप बीज कैसे उग सकता है ?: परन्तु न तो पूरी चौभंगी दो, न पूरी उपमा उतारी, क्योंकि पूरी चौमंगी देते तो वहीं पोल खुल जाती
।
श्रव जरा इस चौभंगी के अर्थ पर विचार कीजिये । यह चौभंगी चार प्रकार के मेघ की उपमा देकर, चार प्रकार के सम्पत्तिवान पुरुषों के भेद बताती है। इसमें कहा है
Ste
-
चार प्रकार के मेघ कहे गये हैं। एक मेघ क्षेत्र में तो बरसता है, परन्तु अक्षेत्र में नहीं वरखता। यानी जहाँ बरसना चाहिये, वहाँ तो बरसता है, और जहाँ न बरसना चाहिये, वहाँ नहीं वरंसता । दूसरा मेघ अक्षेत्र में बरसता है और क्षेत्र में नहीं बरसता । तीसरा मेष क्षेत्र और क्षेत्र दोनों ही में बरसता है और चौथा मेघ न क्षेत्र में बरसता है, न श्रक्षेत्र में हो बरसता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष हैं। एक उस मेघ की तरह हैं, जो क्षेत्र में बरसता है, परन्तु अक्षेत्र में नहीं बरसता । दूसरे
उस मेघ की तरह हैं, जो अक्षेत्र में तो बरसता है, परन्तु क्षेत्र
1
में नहीं रखता। तीसरे उस मेघ की तरह हैं, जो क्षेत्र में भी बरसता है और अक्षेत्र में भी बरसता है। तथा चौथे उस मेघ की तरह हैं, जो क्षेत्र या अक्षेत्र कहीं भी नहीं बरसता ।
รร