Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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( ३७ ) ' पर्वातसाधु जीवों को क्यों बचा १ जो जीव दुःख पा रहे हैं, वे अपने कर्म से दुःख पा रहे हैं, इसलिए साधु उन्हें क्यों बचायें ? हाँ, यदि कोई पाकर साधु की संगति करे, तो उसको जैन-धर्म अवश्य सिखा देवेंगे।
मारे जाते हुए बकरे का जीवित रहना क्यों नहीं इच्छा जाता (यानी मरते हुए जीव को क्यों नहीं बचाया जाता)। इस पर एक दृष्टान्त सुनिये ! साहूकार के दो लड़के हैं, जिनमें से एक कपूत है, जो अपने सिर पर बहुत कठिन और अपार ऋण कर रहा है। लेकिन दूसरा लड़का संसार में सुप्रसिद्ध एवं यशस्वी है, जो कठिन ऋण चुका रहा है। अब धाप दोनों पुत्रों को देखकर किसको बजेगा, किसे हटकेगा और रोकेगा ? जो कर्ज कर रहा है उसको इटकेगा या जो कर्ज चुका रहा है उसको ? जो उड़का अपने सिर पर अधिक ऋण कर रहा है, बाप उसको बार बार बजेगा और कहेगा कि इतना कठिन ऋण क्यों कर रहा है ? इस कर्ज करने का दुष्परिणाम प्रत्यक्ष ही भोगना होगा। जो लड़का अपने सिर पर का कर्ज उतार रहा है, बाप उसको नहीं
बजेगा, उसको वो प्रशंसा ही करेगा। - इस दृष्टान्त के अनुसार साधु, बाप के समान है और
बकरा (मारा जाने वाला) तथा राजपूत (बकरे को मारने वाग) दोनों साधु-रूपी पिता के दो पुत्र हैं। इन दोनों