Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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नहीं हैं, तो हमको . उनका यह. उत्तर सुनकर प्रसन्नता ही होगी। परन्तु वे स्पष्टतया ऐसा कदापि नहीं कह सकते, किसी को भुलावे में चाहे भले ही डालें। . . इस प्रकार साधु के सिवाय शेष सभी जीवों को, तेरह-पन्थी साधु छः काय के शख्स, असंयमी अव्रती और कुपात्र बताकर अपना सिद्धान्त वाक्य सुनाते है
छकाय रो शस्त्र वचावियाँ, छ: काया नो वैरी होय जी। त्याँ रो जीवितव्य पिण सावध कह्यो, त्याँ ने वचाया धर्म न होय जो । असंयती रा जीवणा मध्ये धर्म नहीं अंश मातजी | वले दान देवे छ तेहने ते पण सावद्य, साक्षात् जी ॥
('अनुकम्पा' ढाल १३ वीं) .. अर्थात्-जो छः काय के शस्त्र को बचाता है, वह छः काय का वैरी होता है। जिन छः काय के शस्त्र का जीवन पाप पूर्ण कहा गया है, उन छः काय के शव को.बचाने से धर्म नहीं होता। असंयति के जीवन में अंश-मात्र भी धर्म नहीं है. और उनको जो दान दिया जाता है, वह भी पाप पूर्ण है।
इसी बात को और भी अधिक स्पष्ट करने के लिए 'भ्रमविध्वंसन' पृष्ठ १२१ में कहा गया है