Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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दूजो मुत जग दीपतो यश संसार मझार ।
करडी जागाँ रो करज उतारे तिण वार ।। : कहो केहने वरजे पिता दोय पुत्र में देख ।
वर्ने कर्ज करे तसु के ऋण मेटते पेख ॥
__ समझ नर विरला । कर्जे माथे मुत अधिक करंतो वार बार पिता वरंजतो रे। करडी जागाँ रा माथे काँय कीजे प्रत्यक्ष दुख पामीजे रे ।। अधिक माण रो कर्ज उतारे जनक तास नहीं वारे रे । पिता समान साधु पिछाणो रजपूत वकरो वे सुत मानो रे ।। कर्मरूप ऋण माथे कुण करतो आगला कर्म कुण अपहरतोरे । कर्मऋण रजपूत माथे करे थे वकरा संचित कर्म भोगवे छ रे ।। साधु रजपूत ने वर्ने मुहाय कर्म करज करे काय रे । कर्म बंध्यां घणा गोता खासी परभव में दुःख पासी रे ॥ .. · सरवर पणे तिण ने समझायो
तिण रो तिरणो वंछयो मुनिरायो रे । वकरा जिवावण नहीं दे उपदेश रूडी ओलख बुद्धिवन्त रेसरे ॥"
('भिक्षुयश रसायन')