Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
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और सुनिये ! आप रजो-हरण क्यों रखते हैं ? पैर के नीचे कोई त्रस जीव आकर दवं न जावे, इसीलिए या और किसी कार्य के लिए ? परन्तु रजोहरण हिलाने में वायुकायिक जीवों की हिंसा होती है या नहीं? असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा करके तब कहीं आप थोड़े से त्रस जीवों को बचा पाते हैं । ऐसी दशा में एकेन्द्रिय जीवों को अपेक्षा त्रस जीवों का महत्व अधिक रहा या नहीं १ त्रस जीवों की रक्षा के लिए एकेन्द्रिय जीवों की. हिंसा की गई या नहीं? ही है । सोहनलालजी के बाप दादा तेरह-पन्थी श्रावक थे, इसी से सोहनलालजी भी तेरह-पन्थी श्रावक कहलाते थे, परन्तु वास्तव में तेरह पन्य के सिद्धान्त क्या और कैसे हैं ? यह उनको पता न था। लोगों ने सोहनलालजी से कहा कि आप हम पर नाराज़ मत होइए; किन्तु तेरह-पन्थ सम्प्रदाय के आचार्य, पूज्य श्री कालरामजी महाराज यहीं विराजते हैं, उन्हीं से जाकर पूछ लीजिये । सोहनलालजी बरडिया उसो समय श्री कालरामजी महाराज के पास गये। उन्होंने श्री कालरामजी महाराज को समस्त घटना कह सुनाई और प्रश्न किया कि केरढ़ी के बचा देने से मुझे धर्म हुमा या पुण्य अथवा पाप हुआ ? श्री कालरामजी महाराज ने कहा कि न धर्म हुभा. न पुण्य हुआ, किन्तु पाप हुआ। सोहनलालजी ने कहा कि ऐसा क्यों.? मैंने उस केरदी को कोई दुख तो दिया ही नहीं है, फिर मुझे पाप क्यों हुआ? श्री कालरामजी ने कहा कि वह केरड़ी जिसे तुमने बचाई है, खायेगी, पीयेगी, निसमें असंख्य जीवों की हिंसा होगी, फिर वह मैथुन का पाप करेगी, उसकी सन्तान होगी, वह भी खायेगी, पियेगी और 'मैथुनादि पाप