Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्य भाग। समय न हो उमे अकिंचिकाइन्यानाम करने हैं। इसके अनेक मेढ़ हैं नो दूसरे ग्रंथोंसे जानना ।
३८ । निथ्यानानको प्रमाणामास कहते है। प्रमाणामास तीन प्रकारका है । संशय, विपर्यय, और धनव्यवसाय ।
३१ । विन्द अनेक कोटीके स्पर्श करनेवाले मानका संगम कहते हैं। जैसे,- यह सीप है या चांदी।
विपरीत एक कोटीके निश्चय करनेवाले मानको विप. यंय कहते हैं : जैले.-सोपको चांदी जान लेना।
३७ । 'यह क्या है' ऐसे प्रतिमासको अनध्यवसाय कहते हैं। जैने.--मार्ग चलते हुयेको तृण बगेरहका स्पर्श होनेका अनिश्चित झान होना।
८. गुरुसेवाका उपदेश.
अदिल्ल उंद। पाप पंथ परिहरहिं. धरहि शुम पंथ पग।
पर उपकार निमित्त. बखानहि मोक्ष मग । सदा प्रबंहित बित्त. तु तारन तरन जग।
पेले गुल्का सेवत, भागहि करम ठगा | जिन्होंने पापका मार्ग छोड़ दिया और पुग्यमार्गमें चलने ? तथा परोपकारके लिये मोतमार्गका उपदेश करते हैं. चिच किसी भी प्रकारको बांद्यान रखकर जगसे आप तरते और इस को तारते हैं, ऐसे गुरुकी सेवा पूजा करनेसे कर्मरूपी ठग भाग जाते है १६