Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 18
________________ जैनागमों में परमात्मवाद ____ * मङ्गलाचरणम् * अमूर्तस्य चिदानन्द - रूपस्य परमात्मन । निरञ्जनस्य सिद्धस्य, ध्यान स्याद्रूपवर्जितम् । इत्यजस्र स्मरन् योगी, तत्स्वरूपावलम्बन । तन्मयत्वमवाप्नोति, ग्राह्यग्राहकवजितम् ॥ अनन्यशरणीभूय, स तस्मिन् लीयते यथा। ध्यातृ - ध्यानोभयाभावे, ध्येयमैक्य यथा व्रजेत् ॥ सोऽय समरसीभाव , तदेकीकरण मतम् । आत्मा यदपृथक्त्वेन, लीयते परमात्मनि ।। अलक्ष्य लक्ष्य-सम्बधात्, स्थूलात्सूक्ष्म विचिन्तयेत् । सालम्बाच्च निरालम्ब, तत्त्ववित् तत्त्वमजसा ॥ एव चतुर्विधध्यानामृतमग्न मुनेर्मन । साक्षात्कृतजगत्तत्त्व, विधत्ते शुद्धिमात्मन. ।। - योगशास्त्र, प्रकाश १० परमात्मा का स्वरूप मूल पाठ *सव्वे सरा णियट्टन्ति, तक्का जत्थ न विज्जइ, मइ तत्थ न गाहिया, ओए, अप्पइट्ठाणस्स खेयन्ने, से न * सर्वे स्वराः निवर्तन्ते, तर्को यत्र न विद्यते, मतिस्तत्र न ग्राहिका, प्रोजः, अप्रतिष्ठानस्य खेदज्ञः, स न दीर्घो, न ह्रस्वो, न वृत्तो, न - - -

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