Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 86
________________ (६९) एक भाग है सोमिल-भदन्त । आप एक है? दो है? अक्षय है? अव्यय है ? अवस्थित (नित्य) है ? भूतकालोन और भविष्यत्कालीन अनेक पर्यायो वाले है ? ___भगवान-सोमिल । मै एक भी हू, यावत् अनेक पर्यायो वाला भी है। सोमिल- भदन्त । किस आपेक्षा से आप ऐसा फरमाते __भगवान-सोमिल । द्रव्य की अपेक्षा से मै एक हू, ज्ञान, दर्शन की अपेक्षा से मैं दो प्रकार का ह, आत्मप्रदेशो की अपेक्षा से अक्षय (क्षयरहित) हूँ, अव्यय (व्यय-नाशिक नाश से रहित) ह, एव अवस्थित-नित्य भी है। उपयोग की अपेक्षा से मै अनेक भूत ओर भावी पर्यायो वाला हू। इसलिए हे सोमिल | मै एक भी हू, यावत् अनेक पर्यायो वाला भी है।

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