Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ ( ९७) कब तक रहता है ? भगवान महावीर ने कहा-गौतम ! जघन्य क्षल्लकभवग्रहण मे दो समय कम काल तक । क्षुल्लक भवग्रहण का अर्थ होता है-२५६ आवलिकाओ का एक भव करना । उत्कृष्ट काल यावत् असख्यात उत्सर्पिणो-अवसर्पिणो काल तक । क्षेत्र से अगुल के असख्यातवे भाग तक । अर्थात् अगुल के असख्यातमे भाग में जितने प्रकाश प्रदेश है उनमे से एक-एक आकाश-प्रदेश को एक-एक समय मे निकालने पर, जि ने समय मे सारे आकाश प्रदेश निकाले जासके उतने उत्सर्पिणो और अवसर्पिणी काल तक छदमस्थ जीव आहारक रहते है। अनगार गौतम बोले-भदन्त । केवली भगवान आहारक कब तक रहते है ? भगवान महावीर ने कहा-गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट कुछ कम करोड पूर्व काल तक । अनगार गौतम बोले-भदन्त । जीव अनाहारक कब तक रहते है ? भगवान महावीर ने कहा-गौतम । अनाहारक जीव दो प्रकार के होते है । जैसेकि-छद्मस्थ अनाहारक और केवली अनाहारक । छद्मस्थ अनाहारक जघन्य एक समय तक, और उत्कृष्ट दो समय तक। केवली अनाहारक दो प्रकार के कहे गये है। जैसेकि-सिद्ध केवली अनाहारक, और भवस्थ केवली अनाहारक। अनगार गौतम बोले-भदन्न । सिद्धकेवली जीव अनाहारक कब तक रहते है ? भगवान महावीर ने कहा-गौतम सादि-अनन्त काल तक।

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125