Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 119
________________ (१०२) जो सादि-सान्त जीव है, उनका अवस्थितिकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक । अर्थात् अनन्त उत्सपिणिअवसर्पिणियों तक । जिस प्रकार वनस्पतिकाल अनन्त होता है, वैसे ही इन जीवो का भी अवस्थितिकाल अनन्त समझना चाहिए। __ अनगार गौतम बोले-भदन्त ! भाषक जीवो का अन्तर कितने काल का होता है ? भगवान महावीर ने कहा-गौतम । जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल, अर्थात् अनन्तकाल तक होता है । प्रभाषक सादि-अनन्त जीवों का अन्तरकाल नही होता है। सादि-सान्त जीवो का अन्तरकाल जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त होता है। इन का अल्पबहुत्व इस प्रकार समझना चाहिए___ सब से कम भाषक जीव होते है। अभाषक जीव इन से अनन्त गुणा अधिक होते है। अथवा सर्वजीव दो प्रकार के कहे गये है। जैसेकिसशरीरी और अशरीरी। अशरीरी जीवो को सिद्धो के समान समझना चाहिए । अशरीरी कम है, और सशरीरी इन से अनन्तगुणा अधिक होते है। मूल पाठ अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा-चरिमा चेव, अचरिमा चेव । - अथवा द्विविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः । तद्यथा-चरमाश्चैव अचरमाश्चैव । चरमो भदन्त ! चरम इति कालतः कियच्चिर भवति ?

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