Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 115
________________ ( ९८ अनगार गौतम बोले-भदन्त । भवस्थ केवली जीव अनाहारक कितने प्रकार के होते है ? भगवान महावीर ने कहा---गौतम । भवस्थकेवली अनाहारक जीव दो प्रकार के होते हे। जसेकि-सयोगी भवस्थ केवली अनाहारक और अयोगी भवस्थ केवली अनाहारक। __ अनगार गोतम बोले-भदन्त । सयोगो भवस्थ केवली जीव अनाहारक कब तक रहते है ? भगवान महावीर ने कहा-गौतम । सयोगी भवस्थ केवली जीव जघन्य और उत्कृष्ट तीन समय तक अनाहारक रहते है। और अयोगीभवस्थ केवली जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त अनाहारक रहते है । अनगार गौतम बोले-भदन्त । छद्मस्थ आहारक जीव का अन्तरकाल कितना होता है ? । ___ भगवान महावीर ने कहा-गौतम | जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय तक । केवलो आहारक जीव का अन्तरकाल जघन्य और उत्कृष्ट तीन समय तक होता है। छद्मस्थ अनाहारक जीव का अन्तरकाल-जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण तक और उत्कृष्ट असख्यात काल तक होता है. यावत क्षेत्र की अपेक्षा अगूल का असख्यातवा भाग। सिद्धकेवली अनाहारक जीव सादि-अनन्त होते है, इसलिए उनका अन्तर नही होता है । सयोगीभवस्थ केवली अनाहारक जीव का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त ही होता है । अयोगी भवस्थ केवली अनाहारक जीव का अन्तर नही होता है। __ अनागार गौतम बोले-भदन्त ! इन आहारक और अनाहारक जीवो मे कौन अल्प है और कौन अधिक है ?

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