Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 107
________________ ( ९०) गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तजहाछउमत्थअणाहारए य केवलिअणाहारए य । छउमत्थअणाहारए ण जाव केवचिर होति ? गोयमा? जहण्णेण एक्क समय उक्कोस्सेण दो समया । केवलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तजहासिद्ध-केवलिअणाहारए य भवत्थकेवलिअणाहारए य । सिद्ध-केवलि-अणाहारए ण भते ! कालओ केवचिर होति ?, सातिए अपज्जवसिए। भवत्थकेवलि-अणाहारए ण भते । कइविहे पण्णत्ते? भवत्थकेवलि-अणाहारए दुविहे पण्णत्ते-सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य। ____सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए ण भते | कालओ केवचिर होति ?, अजहण्णमणुक्कोसेण तिण्णि समया। अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए जह० अतो०, उक्को० अंतोमुहत्तं । छउमत्थआहारगस्स केवलिय काल अतरं० ?, गोयमा ! जहण्णेण एक्क समय, उक्को० दो समया। केवलिआहारगस्स अंतर-अजहण्णमणुक्कोसेण तिण्णि समया । छउमत्थअणाहारगस्स अतर

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