Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti
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(७७) वा अपज्जवमिते, साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ ण जे से सादिए सपज्जवसिने से जहण्णेण एक्क समय उक्को० अतोमहुत्त।
सवेयगस्स ण भते | केवति-काल अतर होइ ?
अणादियस्स अपज्जवसियस्स णत्यि अतर, अणादि- । यम्स सपज्जवसियस्स नत्यि अतर, सादायस्स सपज्जवसियस्स जहण्णण एक्क समय, उक्कोसेण अतोमुहुत्त ।
अवेदगस्म ण भते | केवतिय काल अतर होइ ?,
सातीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अतर, सातीयस्स सपज्जवसियस्स जह० अतोमु० उक्कोसेण अणत काल जाव अवड्ढ पोग्गतपरियट्ट देसूण । अप्पाबहुग-सव्वत्थोवा अवेयगा, सवेयगा अणतगुणा । एव सकसाई चेव अकसाई चेव २ जहा सवेयगे तहेव भाणियब्वे ।
अहवा दुविहा सव्वजीवा-सलेसा य अलेसा य जहा असिद्धा सिद्धा, सव्वत्थोवा-अलेसा, सलेसा अणतगुणा।
सस्कृत-व्याख्या अथवा द्विविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा-सेन्द्रियाश्च-प्रनिन्द्रियाश्च, तत्र सेन्द्रियाः-ससारिण , अनिन्द्रिया:--सिद्धा. । उपाधिभेदात्पृथगुपन्यास । एव सकायिकादिष्वपि भावनीय, तत्र सेन्द्रियस्य कायस्थितिरन्तर चासिद्धवद्वक्तव्य, अनिन्द्रियस्य सिद्धवत्, तच्चवम्-'सइदिए

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