Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 104
________________ ( ८७ ) हिन्दी- भावार्थ अथवा सर्वजीव दो प्रकार के कहे गए है । जैसेकि ज्ञानो और अज्ञानी । अनगार गौतम बोले- भगवन् । ज्ञानी जोव कब तक रहते है ? । ज्ञानी जीव दो भगवान महावीर ने कहा- गौतम प्रकार के होते है । जैसेकि - सादि - अनन्त, और सादि - सान्त । इन मे जो जीव सादि - सान्त होते है, उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक ६६ सागरोपम की होती है । अज्ञानी जीवो को सवेदक जीवो के समान समझना चाहिए । ज्ञानी जीवो का अन्तर जवन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक होता है । अनन्तकाल के भी अनन्त भेद होते है, किन्तु प्रस्तुत मे उस अनन्त का ग्रहण करना चाहिए जिसमे कुछ कम पार्ध पुद्गल परावर्तन जितना समय लग जाता है । पहले दो प्रकार के अज्ञानी जीवो का अन्तर नहा होता है, परन्तु सादि- सान्त अज्ञानी जीवो का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त, और उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक ६६ सागरोपम तक होता है । इन जीवो का अल्पबहुत्व इस प्रकार है सब से कम ज्ञानी जीव है । इन को अपेक्षा अज्ञानी जीव अनन्तगुणा अधिक है । अथवा सर्वजीव दो प्रकार के कहे गए है । जैसेकि - १ - साकारोपयुक्त (ज्ञानोपयोग वाले), २- अनाकारोपयुक्त ( दर्शनोपयोग वाले ) । टीकाकर के मतानुसार यहा सर्वजीव शब्द से छद्मस्थ जीवो का ही ग्रहण करना सूत्रकार को इष्ट है । उनके कथनानुसार यहा केवली और सिद्ध जीवो का ग्रहण नही करना चाहिए। इन दोनो प्रकार के जीवो का

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