Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 98
________________ (८५) अपज्जवसियम्म णत्थि अतर, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णण अतोमुहुत्त उक्कोसेण अनत काल जाव अवड्ढ पोग्गलपरियट्ट देसूण' मिति,अस्य व्याख्या पूर्ववत् । अल्मबहुत्वमाह-एएसि भते । जीवाण सकसाइयाण' मित्यादि प्राग्वत् । प्रकारान्तरेण द्वैविध्यमाह । हिन्दी-भावार्थ अथवा सर्वजीव दो प्रकार के कहे गये है । जैसेकि सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। अनगार गौतम बोले-भगवन् ! सेन्द्रिय जीव काल से कब तक रहता है ? ___भगवान महावीर ने कहा-गौतम । सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते है-१ अनादि-अनन्त, ओर २ अनादि सान्त । कितु अनिन्द्रिय (सिद्ध) जीव सादि-अनन्त होते है। दोनो प्रकार के जोवो के अन्तर नही होता है । सब से कम अनिन्द्रिय जीव होते है । इन की अपेक्षा सेन्द्रिय जीव अनन्त गुणा अधिक होते है। अथवा सर्वजीव दो प्रकार के कहे गए है । जैसेकि सकायिक (पृथ्वी आदि काय वाले , अकायिक (काय से रहित, सिद्ध)। इसी प्रकार सयोगी (मन,वचन,काया के व्यापार वाले) और अयोगी (सिद्ध), सलेश्य कृष्ण, नील आदि लेश्यारो वाले), और अलेश्य लेश्याओ से रहित-सिद्ध , सशरीर औदारिक आदि शरीर वाले), और अशरीर (शरीर-रहित, सिद्ध)। ___सकायिक आदि सभी जीवो का सस्थान (अवस्थिति), अन्तर, और अल्पबहुत्व सेन्द्रिय जीवो के समान समझना

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