Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti
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( ३० )
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जहानामए धूमस्स इणविप्पमुक्कस्स उड्ढं वोसनाए निव्वाघाएण गती पवत्तति एव खलु गोयमा ! | कहन्न भते । पुव्वप्पओगेण अकम्मस्स गती पण्णत्ता ?, गोयमा ! से जहानामए कण्डस्स कोदण्डविप्पमुक्कस्स लक्खाभिमुही निव्वाधाएण गति पवत्तइ । एव खलु गोयमा ! नीसगयाए निरगणया जाव पुव्वापओगेण अकम्मस्स गती पण्णत्ता |
— व्याख्याप्रज्ञप्ति ७ शतक १ उद्देश्शक, सू० २६५
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संस्कृत - व्याख्या
'गई पण्णायइ' त्ति गति प्रज्ञायते अभ्युपगम्यते इति यावत् 'निस्सगयाए' त्ति निसगतया कर्ममलापगमेन 'निरगणयाए' ति नीरागतया मोहापगमेन 'गतिपरिणामेण' त्ति गतिस्वभावतया अलाबुद्रव्यस्यैव 'बघणछेयणाए' त्ति कर्मबधनछे दनेन एरण्डफलस्येव 'निरधणता' ति कर्मेन्धनविमोचनेन धूमस्येव 'पुव्वप्पोगेण' त्ति सकर्मताया गतिपरिणामवत्त्वेन बाणस्येवेति । एतदेव विवृण्वन्नाह - 'कहन्न' मित्यादि, निरुवहय, त्ति वातादयनुपहत 'दब्भेहि य' त्ति दर्भे समूलैः 'कुसेहि य' त्ति कुरौ दर्भेरेव छिन्नमूलै, 'भूइ भूइ' त्ति भूयोभूय. 'अत्थाहे' त्यादि इह मकारी प्राकृतप्रभावत. अस्ताघेतएवानवतारेऽतएव अपौरुषेये, अपुरुषप्रमाणे 'कलसिबलियाइ वा ' कलाभिधान्यफलिका 'सिबलि' त्ति वृक्षविशेष. 'एरण्डमिजिया' एरण्डफलम् । एगतमन्त गच्छइ' एक इत्येवमन्तो निश्चयो यत्रामावेकान्त एक इत्यर्थः । अतस्तमन्त भूभाग गच्छति, इह च बीजस्य गमनेऽपि (यत्) कलायसिंबलिकादेरिति यदुक्त तत्तयोरभेदोपचारादिति ।
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