Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 64
________________ (४७) गर्भावास-गर्भ मे निवास करना, इन सब प्रपचो से वे रहित है । सिद्ध भगवान भविष्यत् काल मे सदा के लिए मोक्ष मे विराजमान रहेगे। मूल पाठ * अत्थि एग धुव ठाण, लोगग्गमि दुरारुह । जत्थ नत्थि जरा मच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ।। - उत्तराध्ययन सूत्र अ० २३/८१ __ सस्कृत-व्याख्या अस्त्टेकमद्वितीय ध्रुव शाश्वतं स्थान लोकाने 'दुरारुह' त्ति दुखेनारुह्यतेऽध्यास्यते इति दुरारोहम् । दुरापेणैव सम्यग्दर्शनादित्रयेन तस्य प्राप्यत्वात् । यत्र न मन्ति जराऽऽदीनि प्रतीतानि, वेदना शरीरादिपीडा ततश्च व्याध्यभावत क्षेमत्व, जरा-मरणाभावतः शिवत्व, वेदनाऽभावतोऽनाबाधत्बमुक्तमिति यथायोग भावनीयम् । हिन्दी-भावार्थ लोक के अग्रभाग मे एक ध्र व-नित्य स्थान है, जिस पर आरोहण करना अत्यन्त कठिन है। उस स्थान मे अवस्थित जीवो को न जरा-बुढापा है, न मृत्यु है, न व्याधिया है और न नाही वेदनाए होती है। * अस्त्येकं ध्रुव स्थान, लोकाने दुरारोह । यत्र नास्ति जरा मृत्यु , व्याधयो वेदनास्तथा ॥

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