Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 68
________________ ५१) मूल पाठ * सिद्धा ण भते । कि सोवचया, सावचया, सोवचयसावचया, णिरुवचयणिरवचया ? गोयमा । सिद्धा सोवचया, णो सावचया, णो सोबचयसावचया, णिरुवचयणिरवचया । हिन्दी-भावार्थ भगवान गौतम बोले-भगवन् ! सिद्ध क्या सोपचय-वृद्धि वाले है, सापचय है-हानि वाले है, सोपचयसापचय है-वृद्धि और हानि वाले है, तथा निरुपचय-निरपचय है-वृद्धि तथा हानि वाले नही है ? ____ भगवान महावीर बोले- गौतम ! सिद्ध सोपचय है, सापचय नही है, सोपचय-सापचय नहीं है तथा निरुपचय-निरपचय है। मूल पाठ + सिद्धा णं भन्ते ! केवइय काल सोवचया ? गोयमा! जहण्णेण एग समय, उक्कोसेण अट्ठसमया। * सिद्धा भदन्त ! किं सोपचयाः, सापचयाः, सोपचयसापचयाः, निरुपचयनिरपचयाः ? गौतम । सिद्धा. सोपचया. नो सापचया , नो सोपचय-सापचया., निरुपचयनिरपचया.. + सिद्धा भदन्त । कियन्तं काल सोपचया:? _ गौतम ! जघन्येन एक समयमुत्कर्षण मष्टसमयान् ।

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