Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 77
________________ (६०) दृष्टि), चार दर्शन (चक्षुर्दर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन), पाच ज्ञान, (मति, श्रुत आदि), चार सज्ञाए (आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, ये चार सज्ञाए), पाच शरीर (औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण), तीन योग (मन-योग, वचनयोग, काय-योग), दो उपयोग (दर्शनोपयोग, ज्ञानोपयोग), द्रव्यप्रदेश (द्रव्य के खण्ड), पर्याय (अवस्थाए), और अद्धा (काल) इन को जोड लेना चाहिए । अर्थात् ये सभी शाश्वत है, नित्य है, इन मे कोई पहले नहीं है, कोई पीछे नही है। रोह-भगवन् ! लोकान्त पहले है, सद्धिा (भूत, वर्तमान, भविष्य, तीनो काल, सम्पूर्ण काल) पीछे है ? भगवान-रोह | दोनो शाश्वत है, नित्य है, इन मे कोई पहले हो, कोई पीछे, ऐसी बात नही है । जिस प्रकार लोकान्त के साथ अवकाशान्तर आदि को जोडकर प्रश्नोत्तर किए गए है, उसी प्रकार अलोकान्त के साथ अवकाशान्तर आदि को जोड लेना चाहिए, प्रश्नोत्तर बना लेने चाहिए। रोह-भगवन् ! सप्तम आकाश पीछे है, अथवा सप्तम तनुवात ? भगवान-रोह ! दोनो शाश्वत है, नित्य है, कोई पहले पीछे नही है ? ___इसी प्रकार सप्तम आकाश के साथ घनवात, घनोदधि आदि से लेकर सर्वाद्धा तक, इन सभी को जोड़ लेना चाहिए। रोह-भगवन् ! सप्तम तनुवात पीछे है, सप्तम घनवात पीछे नही है।

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