Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ ( ३८ ) आयु वाले तथा उत्कृष्ट करोड पूर्व की आयु वाले जीव सिद्ध होते है । मूल पाठ * अत्थि ण भते ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसन्ति ? जो इट्ठे समट्ठे, एव जाव अहे समाए । संस्कृत - व्याख्या 'ते ण तत्थ सिद्धा भवती' त्ति प्राक्तनवचनाद् यद्यपि लोकाग्र सिद्धाना स्थानमित्यवसीयते तथापि मुग्धविनेयस्य कल्पितत्रिविधलोकाग्रनिरासतो निरुपचरितलोकाग्रस्वरूप विशेषावबोधाय प्रश्नात्तरसूत्रमाह'प्रत्थि ण' मित्यादि व्यक्त, नवर यदिद रत्नप्रभाया श्रधस्तदेव लोकानमिति तत्र सिद्ध परिवसन्तीति प्रश्न:, तत्रोत्तर - नायमर्थ समर्थ इति, एव सर्वत्र । हिन्दी - भावार्थ गौतम स्वामी बोले- भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा नामक पृथ्वी (नरक) के नीचे सिद्ध रहते है ? भगवान बोले - गौतम । रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे सिद्ध नही रहते है । इसी प्रकार यावत् सातवी पृथ्वी के नीचे भी सिद्ध नही रहते है | * प्रस्ति भदन्त 1 अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्या. अध सिद्धा. परिवसन्ति ? नायमर्थ. समर्थः एव यावत् अध. सप्तम्याः ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125